🌄 नंदा देवी ईस्ट बेस कैंप ट्रेक

रहस्य, रोमांच और हिमालयी शान का संगम

भारत की दूसरी सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउंट नंदा देवी का पूर्वी बेस कैंप आपको हिमालय की उस दुनिया में ले जाता है, जहाँ प्रकृति अपने सबसे खूबसूरत रूप में दिखाई देती है। सुनंदा के नाम से जानी जाने वाली इसकी दो चोटियाँ इस ट्रेक की चमक और भी बढ़ा देती हैं।


🏔️ क्यों खास है यह ट्रेक?

  • चमकते ग्लेशियरों और ऊँचे हिमालयी शिखरों के दुर्लभ दृश्य

  • शांत, कम भीड़ वाली जौहर घाटी का अनुभव

  • प्रकृति की गोद में बहती गोरी गंगा का गूँजता स्वर

  • हिमालयी संस्कृति, गांवों और रहस्यमय मार्गों की खोज


🚩 ट्रेक की शुरुआत

यह ट्रेक नेपाल सीमा के पास, पिथौरागढ़ ज़िले के मनमोहक शहर मुनस्यारी से शुरू होता है। यहाँ से आगे बढ़ते हुए आप घने जंगलों, प्राकृतिक घास के मैदानों और तंग पहाड़ी रास्तों से गुजरते हैं।


🔥 रोमांचक मुख्य बिंदु

  • नैन सिंह टॉप तक चुनौतीपूर्ण चढ़ाई

  • खूबसूरत बगडियार घाटी का अद्भुत लैंडस्केप

  • ऐतिहासिक मार्टोली गाँव की हिमालयी विरासत

  • गंगहर से सुनंदा की दोनों चोटियों के mesmerizing दृश्य


❄️ अंतिम मुकाम

गंगहर से आगे ट्रेक आपको ले जाता है शक्तिशाली मिलम ग्लेशियर तक—जो कभी तिब्बत तक जाने वाले प्राचीन व्यापार मार्ग का हिस्सा रहा है। आज भी यहाँ ITBP द्वारा सीमा सुरक्षा की चौकसी आपको महसूस होती है।


हरी प्रदर्शनी का भव्य शुभारम्भ
मल्ला दुम्मर गांव मुनस्यारी में हर्ष और उत्साह के साथ हरी प्रदर्शनी का शुभारम्भ हो चुका है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में आयकर आयुक्त श्रीमान नरेंद्र जंगपांगी ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। साथ ही विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीमान पंकज बृजवाल, प्रधान, ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई।
कार्यक्रम में स्थानीय संस्कृति और परंपराओं की झलक देखने को मिली, जहाँ स्थानीय वेशभूषा में लोग रंग-बिरंगे परिधानों में सुसज्जित होकर सम्मिलित हुए। प्रदर्शनी में क्षेत्र की लोक कला, संस्कृति और हस्तशिल्प के साथ-साथ पर्यावरण और हरियाली के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया।
इस आयोजन ने स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों का भी मन मोह लिया और क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करने का एक अनूठा अवसर प्रदान किया।
दुदपानी जोहार मुनस्‍यारी
दुदपानी मुनस्‍यारी से लगभग 60-70 किलोमीटर आगे जोहार घाटी की तरफ है,
जो कि मुनस्‍यारी से मिल्‍लम गॉंव जाते समय रास्‍ते पर एक छोटी नदी के रूप में बहती है 
जो आगे चलकर गोरी नदी में मिल जाती है,यह छवि 2013 से पहले की है।
महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को हमारा शत शत नमन। श्री नरी राम विश्वकर्मा जी जीवन परिचय (5 जुलाई 1905 - 8 अप्रैल 1981) श्री नरी राम विश्वकर्मा जी का जन्म 5 जुलाई 1905 में नरी राम जी पुत्र कीट राम जी के घर जोहार मुनस्यारी के बुर्फू गाँव मे हुआ था ,नरी राम जी की शिक्षा तल्ला जोहार (बमोरी) में हुई । 1938 में इन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली और बढ चढ़ कर कांग्रेस के कार्यक्रमों में भाग लेना शुरु कर दिया जिस कारण अंग्रेजो ने इनको अपने नज़र में रखे रखा और उनको गिरफ्तार करने के लिए एक मौका तलाशने लगे। इनका कार्य क्षेत्र मुख्यतः गराई गंगोली था वहीं से उन्होंने महात्मा गाँधी जी के साथ जाकर सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लिया और अंग्रेजो के खिलाफ अन्दोलन किया । अंग्रेजो को तो उन्हें गिरफ्तार करने के लिए एक मौके की तलाश थी 24 फरवरी 1941 को श्री नरी राम विश्वकर्मा जी को अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार कर के जेल मे डाल दिया अंग्रेजी सरकार को उनकी माली हालत के बारे मे पता था और उनको दिनाकं 28 अप्रैल 1941 को 5 रुपये का जुर्माना लगाया गया जुर्माना ना भरने पर उनके घर से सामानों (एक थुल्मा ,एक दन ,एक पंखी = 60 रुपए ) की कुर्की (नीलामी ) कर दी गयी और नीलामी के दौरान उनके घर से ताबे का एक लोटा गलती से लुड़क कर पडोसी के खेत में जाकर गिरा और आज भी वह लोटा उनके घर पर मौजूद है ।। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लगातार आन्दोलन से उनके विरुद्ध 05 मार्च 1941 को नोटिस जारी किया गया लेकिन उन्होंने उस नोटिस का बहिस्कार किया जिस कारण उनको 7 मार्च 1941 को अल्मोड़ा जेल डाल दिया गया 21 मार्च 1941 को अल्मोड़ा से हटा कर जिला जेल बरेली भेज दिया गया और नगत जुर्माना ना भरने पर राच हत्कार्घा चरखा , खाना बनाने के बर्तन नीलम कर दिए गए और 60 रुपये भी जुर्माना लगाया गया, संपूणानन्द बहुगुणा पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के साथ भी वो जेल मे रहे । उनके परम मित्र श्री हरीश सिंह जंगपांगी जी जो की दुम्मर रहते थे उनके कहने पर सन 1944 में गाँधी नगर गाँव आये और यहाँ लोगो को बसाया । देश मे स्वतंत्रता आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था और वह भी गाँधी जी के साथ आंदोलनों मे अपनी भागीदारी दे रहे थे और देश के सभी अन्दोलनकारियों की सहायता से 15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिली, सन 1948 में वो जिलाबोर्ड अल्मोड़ा के सदस्य भी रहे ।। आजादी के बाद जब वो अपने घर वापस आये तो उनकी दो पत्नियों ( आनन्दी देवी और पदिमा देवी ) से एक भी संतान प्राप्त नहीं हुवा था और वो संतान की प्राप्ति के लिए कैलाश चले गए और वहाँ भोलेनाथ की गुफा मैं तपस्या की और कुछ समय बाद वो अपने घर वापस आ गए और सन 1962 में पुत्र श्री रंजीत विश्वकर्मा रत्न की प्राप्ति हुवी,8 अप्रैल 1981 को उनका बीमारी के चलते देहांत हो गया ।।