बुराँस का पेड़ उच्च हिमालय क्षेत्र 1500 से 3600 मी0 की ऊँचाई के बीच पाया जाता है , यह सदाबहार वृक्ष है,मुनस्यारी के जंगलो में फरवरी, मार्च ,अप्रैल के महीने में फूल आने लग जाते है । हमारे पहाड़ में इसे पहाड़ी गुलाब भी कहा जाता है,बुराँश की सुंदरता उसे देखते ही बनती है,बुरांश वैसे तो उत्तराखंड का राज्य पुष्प है और मुनस्यारी के जंगलों की शान है । बुराश का पूरा पेड हा उपयोगी हैं ,पत्ते जैविक खाद बनाने केकाम आ जाते है ,तने से कृषि के सामग्री और घरो पे ईधन की लकड़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है । और इसके फूलो का तो जूस बनाया जाता है जो ह्रदय रोगों में काफी लाभकारी है । मुनस्यारी में बुराश के फूल खिल जाते है और वैसे ही सूख जाते है ,इसका सदपयोग हो सकता है ,मुनस्यारी से बहार वाले लोग आ के यहाँ के फूल तोड़ कर ले जाते है और उस का जूस बनाकर बेचते है ,अगर यहाँ के लोगो यह कम करें तो यहाँ के लोगो को अच्छा रोज़गार मिल सकता है ।
जब हम छोटे तो फुलदेह का का इंतजार रहता था और हम एक दिन पहले ही मुनस्यारी के जंगलों में चले जाते थे और साथ में हमारे बड़े भाई लोग आते थे,भाई बुराँश के पेड़ जा कर पेड़ से फूल तोड़ कर हमें नीचे देते थे और हमारा काम उन फूलों को टोकरी (डव्वक) में डाल कर घर ले आते थे। और अगले दिन फूल लेके सभी के घर में फुलदेह के लिये जाते थे और सभी के घरों में फूल डाल के आठ थे और बदले में वो चावल,गुड़ और कुछ पैसे देते थे , जो कि उस समय के हिसाब से बहुत होता था। आपको याद है या नहीं अगले दिन ग्वाल भत्ते करते थे वही दिन अच्छे थे।
कभी कभी सोचता हूँ के हमने काफी अच्छा बचपन ब्यतीत किया है क्यूकी हमारे समय में पढायी का उतना बोझ नहीं था जितना की आज कल के बच्चो का है ।
जब हम छोटे तो फुलदेह का का इंतजार रहता था और हम एक दिन पहले ही मुनस्यारी के जंगलों में चले जाते थे और साथ में हमारे बड़े भाई लोग आते थे,भाई बुराँश के पेड़ जा कर पेड़ से फूल तोड़ कर हमें नीचे देते थे और हमारा काम उन फूलों को टोकरी (डव्वक) में डाल कर घर ले आते थे। और अगले दिन फूल लेके सभी के घर में फुलदेह के लिये जाते थे और सभी के घरों में फूल डाल के आठ थे और बदले में वो चावल,गुड़ और कुछ पैसे देते थे , जो कि उस समय के हिसाब से बहुत होता था। आपको याद है या नहीं अगले दिन ग्वाल भत्ते करते थे वही दिन अच्छे थे।
कभी कभी सोचता हूँ के हमने काफी अच्छा बचपन ब्यतीत किया है क्यूकी हमारे समय में पढायी का उतना बोझ नहीं था जितना की आज कल के बच्चो का है ।