चाँचरी / ढुस्का : चाँचरी / ढुस्का उत्तराखंड कुमाऊँ की नृत्य शैली है, जो शुभ अवसरों पर किया जाता है ( जैस नंदा अष्टमी ,खुदाई पूजा ,होली आदि )। चाचरी का जन्म झोड़े से माना जाता है । इसमें पुरुष और महिलायें दोनों ही भाग लेते है ,चाँचरी / ढुस्का मैं गाने के साथ नृत्य भी प्रयोग किया जाता है , इसमे ताल के लिए हुड़का का प्रयोग किया जाता है जो की एक पहाड़ी बाध्य यंत्र है ,इसको दानपुर की नृत्य शैली से प्रभावित भी माना जाता है । यह हमारे मुनस्यारी से लगे गाँव मैं भी गया जाता है, समकोट ,गिन्नी बैंड , लोद ,डोकुला ,कोटा - खड़ीक,बिर्थी ,गोरिपार ,दरकोट ,दरांती ,सेविला,चौना ,हरकोट आदि गाँवो मैं गाया जाता है । इसमे यहाँ की वेश-भूषा का प्रयोग किया जाता है,चाचरी की बोली बहुत ही मीठी होती है ,कुछ चाचरी के बोल निम्न है ।
( 1 )
( 2 )
( 3 )
कमला ग्यू खेत झन जाये
कमला ग्यू बाली टूटली ।।
कमला ग्यू खेत झन जाये
कमला ग्यू बाली टूटली ।।
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( 2 )
रा...त की चेली बीज्य्ना
वै आये क्वाट कौतिक ।।
वै छन भल गितार
वै आये क्वाट कौतिक ।।
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( 3 )
अल्मरा अंग्रेज आयो टेक्स मा
अल्मरा अंग्रेज आयो टेक्स मा
की धाना करू मेरो झुमका रे गे बक्श मा ।।