पंचचूली
पंचचूली पर्वत भारत के उत्तराखंड राज्य के उत्तरी कुमाऊं क्षेत्र में एक हिमशिखर शृंखला है। वास्तव में यह शिखर पांच पर्वत चोटियों का समूह है। समुद्रतल से इनकी ऊंचाई ६,३१२ मीटर से ६,९०४ मीटर तक है। इन पांचों शिखरों को पंचचूली-
१ से पंचचूली-५ तक नाम दिये गये हैं।पंचचूली के पूर्व में सोना हिमनद और मे ओला हिमनद स्थित हैं तथा पश्चिम में उत्तरी बालटी हिमनद एवं उसका पठार है। पंचचूली शिखर पर चढ़ाई के लिए पर्वतारोही पहले पिथौरागढ़ पहुंचते हैं। वहां से मुन्स्यारी और धारचूला होकर सोबला नामक स्थान पर जाना पड़ता है। पंचचूली शिखर पिथौरागढ़ में कुमाऊं के चौकोड़ी एवं मुन्स्यारी जैसे छोटे से पर्वतीय स्थलों से दिखाई देते हैं। वहां से नजर आती पर्वतों की कतार में इसे पहचानने में सरलता होती है।
पौराणिक आधार
इन पर्वतों के पंचचूली नाम का पौराणिक आधार है। महाभारत युद्घ के उपरांत कई वर्षों तक पांडवों ने सुचारू रूप से राज्य संभाला। वृद्घ होने पर उन्होंने स्वर्गारोहण के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान किया। मान्यता है कि हिमालय में विचरण करते हुए इस पर्वत पर उन्होंने अंतिम बार अपना भोजन बनाया था। इसके पांच उच्चतम बिंदुओं पर पांचों पांडवों ने पांच चूल्ही अर्थात छोटे चूल्हे बनाये थे, इसलिए यह स्थान पंचचूली कहलाया। धार्मिक ग्रन्थों में इसे पंचशिरा कहते हैं। कुछ ग्रमीण लोगों की यह मान्यता है कि पाँचों पर्वत शिखर युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव-पाँचों पांडवों के प्रतीक हैं। शौका लोगों का यह पर्वत बहुत चहेता है, इसलिए इनके लोकगीतों में इसे दरमान्योली के नाम से पुकारा जाता है।
पर्वतारोहण
पंचचूली पर्वत की उत्तर-पश्चिम में अक्षांश 30°13'12" और रेखांश 80°25'12" की चोटी पंचचूली-१ कहलाती है।यह चोटी समुद्रतल से ६,३५५ मीटर ऊंची है। पंचचूली प्रथम पर पहली बार १९७२ में आरोहण हुआ था। यहसफल अन्वेषण भारत के भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों ने पूरा किया था, जिसका नेतृत्व हुकुमसिंह द्वारा किया गया था। उन्होंने इसके लिए उत्तरी बालटी ग्लेशियर की दिशा का मार्ग अपनाया था। पंचचूली पर्वत के पांच शिखरों में अक्षांश 30°12'51" और रेखांश 80°25'39" पर पंचचूली-२ सर्वोच्च शिखर है। यह शिखर सागरतल से ६,९०४ मीटर ऊंचा है। इस शिखर पर भी पहला सफल अभियान भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस ने १९७३ में किया था। महेन्द्रसिंह के नेतृत्व में यह अभियान बालटी पठार की ओर से शुरू किया गया था। अक्षांश 30°12'00" एवं रेखांश 80°26'24" पर सागरतल से ६,३१२ मीटर ऊंची पंचचूली-३ पर २००१ में दक्षिणपूर्व रिज की ओर से विजय पाई गई थी, जबकि अक्षांश 30°11'24" और रेखांश 80°27'00" पर स्थित पंचचूली-४ पर १९९५ में न्यूजीलैंड के पर्वतारोहियों ने पहली बार विजय प्राप्त की। इसकी ऊंचाई ६,३३४ मीटर है। दक्षिणपूर्व में अक्षांश 30°10'48" और रेखांश 80°28'12" पर स्थित शिखर पंचचूली-५ है। ६,४३७ मीटर ऊंचे इस शिखर पर १९९२ में इंडोब्रिटिश टीम ने दक्षिण रिज की ओर से पहली बार पांव रखा था।[2] इतने ऊंचे पहाड़ों पर अनेक बार बर्फीले तूफान आते हैं। तूफान के साथ कई बार हिमस्खलन (एवलांच) भी आ जाते हैं। सितम्बर २००३ में भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के ९ सदस्य ऐसे ही एक एवलांच में फंस गये थे।
Photo by Akhilesh Pradhan
पंचचूली पर्वत भारत के उत्तराखंड राज्य के उत्तरी कुमाऊं क्षेत्र में एक हिमशिखर शृंखला है। वास्तव में यह शिखर पांच पर्वत चोटियों का समूह है। समुद्रतल से इनकी ऊंचाई ६,३१२ मीटर से ६,९०४ मीटर तक है। इन पांचों शिखरों को पंचचूली-
१ से पंचचूली-५ तक नाम दिये गये हैं।पंचचूली के पूर्व में सोना हिमनद और मे ओला हिमनद स्थित हैं तथा पश्चिम में उत्तरी बालटी हिमनद एवं उसका पठार है। पंचचूली शिखर पर चढ़ाई के लिए पर्वतारोही पहले पिथौरागढ़ पहुंचते हैं। वहां से मुन्स्यारी और धारचूला होकर सोबला नामक स्थान पर जाना पड़ता है। पंचचूली शिखर पिथौरागढ़ में कुमाऊं के चौकोड़ी एवं मुन्स्यारी जैसे छोटे से पर्वतीय स्थलों से दिखाई देते हैं। वहां से नजर आती पर्वतों की कतार में इसे पहचानने में सरलता होती है।
पौराणिक आधार
इन पर्वतों के पंचचूली नाम का पौराणिक आधार है। महाभारत युद्घ के उपरांत कई वर्षों तक पांडवों ने सुचारू रूप से राज्य संभाला। वृद्घ होने पर उन्होंने स्वर्गारोहण के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान किया। मान्यता है कि हिमालय में विचरण करते हुए इस पर्वत पर उन्होंने अंतिम बार अपना भोजन बनाया था। इसके पांच उच्चतम बिंदुओं पर पांचों पांडवों ने पांच चूल्ही अर्थात छोटे चूल्हे बनाये थे, इसलिए यह स्थान पंचचूली कहलाया। धार्मिक ग्रन्थों में इसे पंचशिरा कहते हैं। कुछ ग्रमीण लोगों की यह मान्यता है कि पाँचों पर्वत शिखर युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव-पाँचों पांडवों के प्रतीक हैं। शौका लोगों का यह पर्वत बहुत चहेता है, इसलिए इनके लोकगीतों में इसे दरमान्योली के नाम से पुकारा जाता है।
पर्वतारोहण
पंचचूली पर्वत की उत्तर-पश्चिम में अक्षांश 30°13'12" और रेखांश 80°25'12" की चोटी पंचचूली-१ कहलाती है।यह चोटी समुद्रतल से ६,३५५ मीटर ऊंची है। पंचचूली प्रथम पर पहली बार १९७२ में आरोहण हुआ था। यहसफल अन्वेषण भारत के भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों ने पूरा किया था, जिसका नेतृत्व हुकुमसिंह द्वारा किया गया था। उन्होंने इसके लिए उत्तरी बालटी ग्लेशियर की दिशा का मार्ग अपनाया था। पंचचूली पर्वत के पांच शिखरों में अक्षांश 30°12'51" और रेखांश 80°25'39" पर पंचचूली-२ सर्वोच्च शिखर है। यह शिखर सागरतल से ६,९०४ मीटर ऊंचा है। इस शिखर पर भी पहला सफल अभियान भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस ने १९७३ में किया था। महेन्द्रसिंह के नेतृत्व में यह अभियान बालटी पठार की ओर से शुरू किया गया था। अक्षांश 30°12'00" एवं रेखांश 80°26'24" पर सागरतल से ६,३१२ मीटर ऊंची पंचचूली-३ पर २००१ में दक्षिणपूर्व रिज की ओर से विजय पाई गई थी, जबकि अक्षांश 30°11'24" और रेखांश 80°27'00" पर स्थित पंचचूली-४ पर १९९५ में न्यूजीलैंड के पर्वतारोहियों ने पहली बार विजय प्राप्त की। इसकी ऊंचाई ६,३३४ मीटर है। दक्षिणपूर्व में अक्षांश 30°10'48" और रेखांश 80°28'12" पर स्थित शिखर पंचचूली-५ है। ६,४३७ मीटर ऊंचे इस शिखर पर १९९२ में इंडोब्रिटिश टीम ने दक्षिण रिज की ओर से पहली बार पांव रखा था।[2] इतने ऊंचे पहाड़ों पर अनेक बार बर्फीले तूफान आते हैं। तूफान के साथ कई बार हिमस्खलन (एवलांच) भी आ जाते हैं। सितम्बर २००३ में भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के ९ सदस्य ऐसे ही एक एवलांच में फंस गये थे।
Photo by Akhilesh Pradhan